सतीश सेठी /ब्यूरो चीफ /सहारनपुर /सनसनीसुराग न्यूज़
दिव्य ज्योति जागृती संस्थान द्वारा शिव कथा का चतुर्थ दिवस
शिव कथा के इस चतुर्थ दिवस में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए परम पूजनीय गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी सुश्री ब्रह्मा निष्ठा भारती जी ने बताया कि शिव श्रृंगार हमें आत्मोत्थान की प्रेरणा दे रहा है। भगवान भोलेनाथ जी के कंठ में नर मुंडो की माला संकेत कर रही है कि यह मानव तन नश्वर है। एक दिन विनष्ट हो जाएगा। परंतु जीवन के विनष्ट होने से पूर्व अर्थी के उठने से पहले जीवन के अर्थ को समझ लेना ,मनुष्य जन्म का वास्तविक उद्देश्य है। शिव को प्राप्त करके जीवन को इस संसार की नश्वरता से हटा कर शिव तत्व की ओर उन्मुख कर जीवन को सार्थक करना ही जीवन का लक्ष्य है। आगे साध्वी जी ने बताया कि भगवान्भोलेनाथ की बिखरी हुई जटाएं हमारे बिखरे मन का प्रतीक हैं। जिस प्रकार भगवान् भोलेनाथ अपनी बिखरी जटाओं को एकत्र कर जटा जूट बांधकर ध्यान में संलग्न हो जाते हैं ठीक इसी प्रकार से हम भी अगर अपने बिखरे हुए मन को एकत्र कर,अपनी चित्तवृत्तियों को समेट कर प्रभु के चरणों में एकाग्र कर दें,समर्पित कर दें, तो हम भी प्रभु के ज्ञान की ओर उन्मुख हो,वास्तविक शांति व आनंद को प्राप्त कर सकेंगे। मानव मन की बिखरी हुई चित्तवृत्तियां ही उसे संसार की मोह माया में उलझाए रखती हैं। जब भगवान् शिव की भांति मनुष्य उस परम तत्व में, उस ब्रह्म तत्व में स्वयं को एकाग्र करता है तो उसका जीवन समस्त समस्याओं से विमुक्त हो जाता है। अर्थात प्रभु चरणों का ध्यान ही समस्त चिंताओं से मुक्ति का साधन है। और यह ज्ञान की प्रक्रिया केवल दो नेत्रों को मूंद कर बैठना भर नहीं है। उसके लिए पहले अपनेध्येय को जानना जरूरी है। धर्म ग्रंथ भी समझाते हैं कि ईश्वर केवल मानने का विषय नहीं है अपितु ईश्वर को जाना जाता है। उन्हें देखा जाता है । उनका साक्षात्कार किया जाता है। ब्रह्म ज्ञान की विधि द्वारा अपने भीतर शि�


