उत्तरकाशी : रासों नृत्य के साथ समाप्त हुआ भंडानी मेला
- उत्तरकाशी # INDIA 121
चला भुलो थोल जोला,गंगा माँ भेंटि की औला,2 गते बैशाख सुरमा मेरा मुल्क मेला। यह सब गीत उत्तरकाशी जनपद की उस अनूठी परम्परा को जीवंत करते है। जिस परम्परा का कोई सानी नहीं। क्योकि इस परम्परा में आध्यातमिक ही नहीं बल्कि लोगों की पारस्परिक मेल की भावनाएं जुडी रहती हैं।
उत्तरकाशी जनपद में हर वर्ष वरुणा घाटी,अस्सी गंगा घाटी,नाल्ड कठूड,बाड़ागढ़ी,बरसाली में 1 गते बैशाख से कड़ार देवता,ज्वाला माँ,रेणुका माँ,नाग देवता के थोलू मनाये जाते है। जो की साल्ड और संग्राली के भंडानी मेले के साथ समाप्त होते है। रविवार को साल्ड में पांच गांव ज्ञानजा,साल्ड,गमदीड़ गांव, बसूँगा,खरवां,लतुड़ गांव भगवान् जगन्नाथ मंदिर में माँ ज्वाला के भंडानी मेले का आयोजन किया गया।
जहाँ पर ग्रामीणों ने माँ की डोली को कंधों पर नचाया। और उसके बाद विधिविधान पूजा अर्चना के बाद रासों नृत्य का आयोजन किया गया। यह जनपद उत्तरकाशी का अनूठा नृत्य शैली है । जिसमे पुरुष और महिलाएं ढोल,दमाऊ और रणसिंघे की थाप पर एक दूसरे के हाथ पकड़ कर नृत्य करते हैं। वही इसके बाद विशेष सिर बिराई खेल का आयोजन किया जाता है।
वयोवृद्ध सते प्रसाद नौटियाल बताते है इस मेले का आयोजन मुख्य रूप से ससुराल गयी बहनों और बेटियों के लिए होता है। क्योंकि वह हर वर्ष अपने मायके के इष्ट देव के लिए उपहार लेकर आती हैं।और आशीर्वाद लेकर अपनों से बचपन के दोस्तों से मुलाक़ात करती है। नौटियाल बताते है कि इस मेले के बाद देवडोली कुछ माह के लिए विश्राम पर चली जाती है।
युवा नेता प्रदीप नेगी का कहना है कि आज हमारी युवा पीढ़ी इस धरोहर से दूर जा रही है। इसलीए आवश्यक है कि इसे पर्यटन से जोड़कर इसके स्वरुप को बढ़ाया जाए। क्योंकि यह एक वरदान है ।