उत्तरकाशी : बड़ाहाट कू थौलू : संस्कृति को संजोए हुए
- सुरेंद्र अवस्थी / उत्तरकाशी
पौराणिक मान्यताओं को समेटे हुए माघ मेला (बडाहाट कू थौलू) माघ माह से पहले एक बार फिर उत्तरकाशी शहर के रामलीला मैदान पर अपनी दस्तक देने को तैयार है।
70-80 के दशकों मैं यह मेला लोगो की खरीदारी का प्रमुख केन्द्र हुआ करता था। बहार से आये व्यापारी कपड़े और अन्य वस्तुओं का व्यापार करते थे। जबकि स्थानीय लोग अपनी मेहनत से उगाई हुई दाले( मुख्यतः तोर,गहत, राजमा) और जाड़ जनजाति के लोग ऊनी वस्त्रो का व्यापार करते थे।
पौराणिक काल मे थोल जात्रा लोगो के मिलन के केंद्र हुआ करते थे। क्योंकि उस समय के लोगो को अपने खेत खलियानों से समय कम मिल पाता था। और थोल त्यौहार मिलने का साधन हुआ करते थे।
कण्डार देवता के गंगा स्नान से शुरू होकर मेला एक सप्ताह तक अपने चरम पर रह कर रंग-बिरंगी संस्कृतियो को संजोए हुए हर्ष-उल्लास के साथ संपन्न होता है। अब उन सभी संस्कृतियो को संजोने के लिये सरकारी विभागों के द्वारा प्रदर्शनी और हाथकरघ उद्योग के नमूने विशेष सहयोग दे रहे है।
भले ही अब भोतिकीकरण के कारण पौराणिक मेलो मे लोगो का उत्साह कम होता जा रहा है। पर अपनी संस्कृति को संजोए रखने के लिए सभी लोगो को बड़ाहाट के थोलू या अपने गांव के मेलों-जात्रा मे शामिल होना चाहिए। भले ही आप देश के किसी भी क्षेत्र मे व्यवसाय या जीवन यापन के लिए गए हो।
बडाहाट के थोलू मे आपका स्वागत है।