उत्तरकाशी : उत्तराखंड के लोक संगीत में बदलाव का नाम : रजनीकांत सेमवाल
- INDIA 121 उत्तरकाशी
रजनीकांत सेमवाल उत्तराखंड के लोक संगीत में जिस बदलाव के साथ मंच पर आए हैं उसमें युवा पीढी उमंग के साथ थिरक रही है। खासकर उतराकाशी जिले की समृद्ध संगीत परंपराओं में लोक जीवन से निकले गीतों को उन्होंने जिस तरह थोडा थोडा पश्चिम के राक शैली में गाना शुरू किया है उसे आज के युवा पसंद कर रहे हैं। अपाचे इंडियन से खासे प्रभावित रंजनीकांत सेमवाल मुंबई का कौथिक हो या श्रीनगर का बेकुंठ चतुदर्शी का मेला या जौनसार का कोई उत्सव उनके गीत ळोगों को थिरका रहे हैं।
रजनीकांत उन कलाकारों में है जिन्होंने बचपन में ही सोच लिया था कि जीवन कला के लिए ही है। इसलिए कला में ही रम गए। हां यह भी महसूस किया कि पहाडों के गीत संगीत में कुछ बदलाव किया जानाचाहिए। ऐसे में शुरू मे कुछ उलाहना भी मिला। तब कहा गया हो कि परंपरा और मौलिकता को बिगाडना ठीक नहीं। लेकिन इस कलाकार ने सोच लिया था कि गीत और उसके प्रभाव लोकसंस्कृति के अनुरूप होंगे , संगीत में भी मार्धुय होगा बस थोडा कुछ ऐसा बदलाव होगा कि नई पीढी के अनुरूप होगा। यही सें उनके पुराने परंपरागत गीतों पर प्रयोग हुए और आज उनके मंच पर आते ही आवाज आती है,, पुरानो मेरु दरजी, सानिता, पोस्तु का छुमा दयारा झुमेलो जैसे गीतो को सुनने की चाह। और एक अलग तरह से चलती आवाज। जो अपने नएपन के साथ है। यह मिश्रण है जहां लोकजीवन का भाव भी है और थिरकती मचलती बयार भी।
उत्तराखंड का लोक संगीत भी समय के साथ कुछ बदलाव की ओर है। उत्तराखंड की बेहद प्रतिभावान कला संगीत मे रमी युवा पीढी ने जान लिया है कि लोोक संगीत को आधुनिक शैलियों की तर्ज पर चलाया तो जा सकता है लेकिन पहाडों की गूंज अवश्य होनी चाहिए। इसलिए नई पीढी जिस थिरकन के साथ उमंग में नृत्य कर रही है थिरक रही है शायद तभी जब उसके अपने शब्द कानों में गूंज रहे हैं उसका अपना अहसास बना हुआ है। आधुनिक साजों के साथ वह खुश है मगर उसे फ्यूलडिया सानिता चैत्वारी जैसे शब्दों की खुशबू का भी अहसास है। गजब आज की पीढी टिपिकल जागर भी सुनना चाहती है और इसे नए साजों में सुनकर भी भाव विभोर हो जाती है । अपनी परंपरा और जीवन को तलाश रही है। फिर पहाडों में विचरने लगी है। इसलिए वह लोकसंगीत में राक स्टार की तरह दिख रहे रजनीकांत को भी सुनना देखना चाहती है। और अमित सागर उसके लिए संगीत का लुभावना व्यक्तित्व बन गया है। उम्मीद है रंजनीकांत अपनी संगीत यात्रा में पहाडों के जीवन को हमेशा साथ रखेंगे। वह राक शैली में जिस भी तरह गीतों को प्रस्तुत करे लेकिन उन गीतों की आत्मा हिमालयीक्षेत्र की ही हो।
- वेद उनियाल जी की फेसबुक वॉल से